रामपुर। दुनिया में धर्म और भाषा के आधार पर सबसे बड़े संघर्ष होते हैं। ऐसे में रामपुर रज़ा लाइब्रेरी एक अनूठी संस्था है, जो बहुभाषावाद, बहुधर्मवाद और बहुसंस्कृतिवाद का आदर्श प्रस्तुत करती है। लाइब्रेरी में दुनिया की अनेक भाषाओं में दुर्लभ पांडुलिपियों का संग्रह है। इस्लाम के चार और आठ मीनारें बहुसंस्कृतिवाद का प्रतीक हैं। लाइब्रेरी की मीनार का पहला भाग मस्जिद, दूसरा चर्च और तीसरा हिंदू मंदिर के वास्तुशिल्प को दर्शाता है।
रामपुर रज़ा लाइब्रेरी में पांडुलिपियों, लघु चित्रों, इस्लामिक सुलेख के नमूनें, कला वस्तुएं, खगोलीय उपकरण, ऐतिहासिक दस्तावेज़, सोना, चांदी के सिक्के आदि सहित लगभग 65,000 मुद्रित पुस्तकों का संग्रह है। यह लाइब्रेरी दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण पांडुलिपियों में से एक मानी जाती है और मानव ज्ञान के विशाल स्वरूप का प्रतिनिधित्व करती है।
पुस्तकालय की स्थापना 7 अक्तूबर 1774 को हुई थी और यह 250वां वर्ष है। यहां आयोजित कार्यक्रम में 'आश्रम परंपरा' की वैदिक मानवता के लिए एक नए मार्ग के रूप में प्रस्तुत की जाएगी। बिना भाषा, मजहब, जाति, क्षेत्र, नस्ल, लिंग, भू-भाग आदि का भेद किए आश्रम परंपरा पूरी मानवता के लिए है। यह श्रेष्ठतर और पूर्ण जीवन शैली की खोज में हज़ार वर्षों से अधिक मानव प्रयास के ज्ञान से प्रेरणा लेती है।
14 जुलाई को एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान प्रमुख समस्याओं पर ध्यान केंद्रित करेंगे और भारतीय दृष्टिकोण से एक नए वैदिक व्यवस्था के मार्ग पर प्रकाश डालेंगे।
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