नवाबी शासन में मोहर्रम के जुलूस के साथ रहती थी रियासत की फौज
– अशरे के दौरान बारह दिनों तक रामपुर में होता था राजकीय अवकाश
– आर्मी का बैंड बजाता था मातमी धुनें, जुलूस में शामिल होते थे शासक
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रामपुर। रियासतकाल में शाही औकाफ के जरिए रामपुर में होने वाली अजादारी अब इतिहास का हिस्सा बन गई है। तब रियासत की फौज जुलूस के साथ रहती थी। बारह दिन का राजकीय अवकाश होता था। जुलूस में आर्मी का बैंड मातमी धुनें बजाता था। तत्कालीन शासक खुद जुलूस में शामिल होते थे।
पूर्व मंत्री नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां के पीआरओ काशिफ खां ने मौलवी मोहम्मद नजमुल गनी खां की किताब अखबारूल सनादीद के हवाले से बताया कि नवाबी दौर में 12 दिनों तक राजकीय अवकाश रहता था। रियासत की फौज मोहर्रम के जुलूसों के साथ रहती थी। फौज का बैंड मातमी धुनें बजाता था। 29 जिल्हिज्जा और सात मोहर्रम के जुलूस में नवाब भी कुछ दूर तक पैदल चलते थे और जुलूस की आमद पर इमामबाड़े में मौजूद रहते थे। सोजख्वानी और मातम में काफी संख्या में लोग शामिल होते थे। बारहवीं मोहर्रम को बड़ा जुलूस निकलता था, जिसके साथ नवाब कर्बला जाते थे। उन्होंने बताया कि मरासिमे आजादरी सैयदुल शोहदा को नवाबी के दौर में जो तरक्की हासिल हुई थी, उसे अंतिम शासक नवाब रजा अली खां के बाद नवाब जुल्फिकार अली ख़ां उर्फ मिक्की मियां और नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां ने भी बरकरार रखा। अजादारी में शिया समुदाय के साथ काफी संख्या में सुन्नी भी शामिल होते थे। अब यह जिम्मेदारी बेगम यासीन अली खां उर्फ शाहबानो और नवाबजादा हैदर अली खां उर्फ हमजा मियां निभा रहे हैं।
जुलूस में अब भी पढ़े जाते हैं नवाब रजा अली खां के लिखे नोहे
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रामपुर। मोहर्रम माह में निकाले जाने वाले जुलूसों में नवाब रजा अली खां के लिखे गए नोहे अभी भी पढ़े जाते हैं। मुस्लिम शासक होने के बावजूद उन्होंने यह नोहे हिंदी भाषा में लिखे थे।
शाही औकाफ के पूर्व मुतवल्ली नवाब काजिम अली खां उर्फ नवेद मियां के पीआरओ काशिफ खां ने बताया कि मोहर्रम की आमद पर अंतिम शासक नवाब रजा अली खां ने अपनी अकीदत का इजहार करते हुए नोहे और मनकबतें लिखी थीं। मुस्लिस शासक होने के बावजूद वो हिंदी भाषा में शायरी करते थे। नवाब रजा अली खां की एक मनकबत के शेर हैं... तुम हो नबी की आंखों के तारे हुसैन जी, ऐ फातिमा के राजदुलारे हुसैन जी। शत्रु से धर्मयुद्ध में न हारे हुसैन जी, मर के अमर भए हैं हुसैन जी। नवाब रजा अली खां के एक नोहे का शेर है... फंसी हो नाव भंवर में तो काहे की चिंता, करेंगे पार रजा बेड़ा पंजतन तुम्हारा।
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