(लेखक नवीन पांडेय)
**रामपुर:** "जब कभी बोलना वक्त पर बोलना, मुद्दतों सोचना मुख्तसर बोलना..." ये पंक्तियाँ शायरी की दुनिया के एक चमकते सितारे, जनाब ताहिर फ़राज़ की हैं, जिन्होंने अपनी शायरी और तरन्नुम के जादू से लाखों दिलों पर राज किया है। बदायूं में जन्मे ताहिर साहब का शायरी का सफर बचपन से ही शुरू हो गया था।
एक दिलचस्प वाकया यह है कि दस साल की उम्र में जब वह स्कूल में फ़िल्म 'गंगा जमना' का गीत "नैन लड़ जाई है" गा रहे थे, तो क्लास के गेट पर खड़े मास्टर साहब ने उन्हें गाते हुए पकड़ लिया। यह घटना उनके जीवन की दिशा बदलने वाली साबित हुई। मास्टर साहब श्री सुरेंद्र मिश्रा, जो खुद संगीत के शिक्षक थे, ने उनकी गायकी की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें संगीत की कक्षा में शामिल कर दिया। इसके बाद ताहिर साहब ने क्लासिकल म्यूजिक की विधिवत पढ़ाई की और स्कूल की भजन गायन प्रतियोगिता में पहला स्थान प्राप्त किया।
**मुकम्मल शायर की पहचान:**
रामपुर में ताहिर फ़राज़ ने मुशायरों में शिरकत की शुरुआत चौदह साल की उम्र से की और यह सफर आज भी जारी है। उनकी दो किताबें "कशकोल" और "आहट आँसुओं की" उर्दू में प्रकाशित हुई हैं, वहीं हिन्दी में उनकी पुस्तक "काश" ने भी काफी लोकप्रियता हासिल की है। उनके लिखे कुछ गीत और भजन संगीतबद्ध किए जा रहे हैं, जो उनकी कला का एक और आयाम है।
**ताहिर फ़राज़ की शायरी:**
ताहिर साहब की शायरी दिल को छू लेने वाली होती है। उनकी कलम से निकले कुछ शेर, जैसे "खुद को पढ़ता हूँ छोड़ देता हूँ, इक वरक रोज़ मोड़ देता हूँ" और "सफर में कुछ न कुछ तो भूल मुझसे भी हुई है, जो पीछे थे मेरे आगे निकलते जा रहे हैं", उनकी गहरी सोच और शायरी के अंदाज को बखूबी बयां करते हैं।
**अंत में:**
ताहिर फ़राज़ का नाम आज भी मुशायरों और सोशल मीडिया पर छाया हुआ है। उनका तरन्नुम और शायरी का अंदाज उन्हें श्रोताओं के दिलों में हमेशा बनाए रखता है। रामपुर के इस अद्वितीय शायर को हमारी ओर से ढेरों दुआएं और शुभकामनाएं।
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2 टिप्पणियाँ
ख़ूबसूरत और दिलचस्प आलेख! नवीन भाई आपका जवाब नहीं!💐💐💐
जवाब देंहटाएंशानदार लिखा आपने।।।पांडे जी ।।फ़राज़ साहब हमारी शान हैं
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